Thursday, April 14, 2011
आँसू
रोता रहता है बच्चा एक पेड़ के नीचे
जान नहीं मुछे वो क्यों ?
प्रफुल्ल कुसुम एक निकट खिला है
और गा रही है चिड़िया गाने मधुर!
मन्द पवन, सुन्दर गगन सब
निकालती है दुःख की बात मन से
पर क्या हुआ इस छोटे बच्चे को
रोने को इस दोपहर में अकेला!
ऊपर रविवर प्रज्वलित है खूब
और इधर उधर लाल रंग की बादल भी है
नीचे लतिका खिले-खुले
खूबसूरत है पूरे ब्रह्मांड देखने को
पर बुरा क्या हुआ इतने छोटे बच्चे के साथ
ये चिल्लाने को इतनी जोर से
जिज्ञासा उमड़ आया मेरे मन में
और दौड़ पहुंचा उसके सामने !
दंग रह गया में एक पल के लिए
मन टूट गया मेरा दुःख से
एक ताज़ा खिले फूल के मृदु
पंखुड़ी जैसे सुन्दर चेहरा
आँसू से भरा हैं; खराब किया
मेरी मन की सब शान्ति !
खबर मिली पूछने पर, वो क्यों
रोते रहते है अकेला वह छाया में
भूका है वो दिनों से
और अब भूख उसे खाने लगे है !
अकाल पड़ा अचानक उस गांव में
और ले गयी उसकी माता को मृत्यु
अब मदद करने को उसकी माँ नहीं है
भूख मिटाने को कोई चीज़ नहीं हैं
क्या करेगा बेचारा बच्चा रोने के सिवा
क्रूर कठोर दुनिया हैं सामने !
यह बगीचा नहीं होवे यदि
इसमें फूल नही खिलते तो !
कैसे एक घर घर बने यदि
वहां एक घरवाली नहीं तो !
सारा संसार ऊसर बने, यदि
बच्चे न खेले वहां तो !
वे हैं फूल, वे हैं मृदु पराग
वे हैं दुनिया के मुख्य जीवन धारा !
जैसे सितारों हैं आसमान को
वैसे ही बच्चे दुनिया को !
शतक यह है बीसवीं की, मानव के
सुख की खोजना अभी आगे ही बड़े
पर शांति कभी नही मिलेगा कवी कहते
यदि संसार में एक भी बच्चा हो
जिसकी आखों मैं है भूख की आँसू
भूख से जले एक पेट हैं तो
कैसे भर सकते हो पेट तुम्हारा ?
फटे-फूटे कपड़ों के बीच
कैसे साहब बनके घूम सकते हो तुम !
यह है भाई, यह है बहन
वह बूढी-बूढा माँ-बाप जैसा
हर बच्चा हमारा हैं और
हम आपस में भाई-बहन है!
आँसू पोछो सब आँखों से
मदद करो सब को जीने की
भगवान की पसन्द उन में हैं
जो देखता है भगवान को गरीबों में !
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